सच्चाई और झूठ के बीच संघर्ष
- Raju Chetry
कभी-कभी लगता है, जो हो रहा है होने दुँ,
गलत का पता होते हुए भी चुप रह लुँ।
आंख के सामने होता हुआ जुल्म, झूठ को नजरअंदाज कर दुँ,
हर गलत चीज़, धोखा, मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा हो और देखता ही रह जाऊ और कुछ ना बोलुँ।
और अपनों से बड़े का इज्जत समझकर मान रखते हुए गलत को और उनकी हा पर हा मिलाऊ और उन्को समर्थन करुँ।
सभी कुछ देखते हुए, समझते हुए चुप हो जाऊ।
क्यु कि हर कोई नाराज हो जाते हे यहा ।
पर फिर यह लगता है, यह तो सरासर कायर की जिंदगी है,
मेरा मन इस कायरता से डरता है, मैं अपने मन से खेल नहीं सकता,
इससे अगर रिश्ता खराब भी होता है तो हो जाए,नाराज भी हो जाते हे तो हो जाए,
वह रिश्ता भी क्या रिश्ता जो सच्चाई और आपकी कड़क बातो पर दूर और नाराज हो जाए,
मैं अपनी तरह और अपने ढंग से जीना चाहता हूं,जो हे उसी मे जीना चाहता हु।
युँही आए थे, युँही चले जाएंगे एक दिन,
बुजदिल की तरह दुनिया को अपनी झुठी रंगीन जिन्दगी दिखावा करने के लिए अपने मन-अंतर्मन को अशांति कर सुकुन और सच्चाई से दूर नहीं ले जा सकता ||
सच तो यह है कि लोगों ने खुदको उसी मोड़ पर धाल लिए हैं,जहां पर सच्चाई की जगह गलत और मिठास को दे दिया,
उन्हें कड़क सच्चाई से ज्यादा मिठास वाली झूठ पसंद आता है,व्यावहारिक रूप से यह सच्चाई है आप अच्छे से गोर करे्ंगे तो।
रिश्ता सच से नहीं बल्कि झुठ से जुडने लगे हे,और झुठ को महत्व दिया जा रहा है।
और हम जिस चीज को बढावा देते हे उसकी लोकप्रियता खुद बढने लग जाती हे।
NOTE:- यह लेख जीवन में सच्चाई और झूठ के बीच के संघर्ष को ,सच्चाई और ईमानदारी के महत्व को दर्शाती है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे लोग अक्सर सच्चाई की जगह झूठ और मिठास को चुनते हैं, और कैसे यह हमारे समाज को प्रभावित करता है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जीवन में सच्चाई के बिना रिश्ते और जीवन का कोई मायने नहीं है।रिशते बने रहे भी तो दिखावे के ।
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